शंख, पद्‌म, गदा चक्र का अर्थ क्या ?

शंख, पद्‌म, गदा चक्र का अर्थ क्या?

प्रकृति केनियम मानवी नियमों से भिन्न हैं। प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। पुलिस शायद किसी कातिल को ढूंढ़ नहीं पाए या ढूंढ़ें तो रिश्वत लेकर छोड़ दें पर प्रकृति की पुलिस ऐसे काम नहीं करती। वह वफादार ही नहीं है पर होशियार भी है। आप सोच रहे होंगे, कैसी है यह पुलिस है और वह सब कुछ कैसे जानती है? यह पुलिस है कारण और प्रभाव का कानून, लॉ ऑफ कॉज एंड इफेक्ट। हम इसका उल्लंघन नहीं कर सकते। इसके इशारों पर दुनिया नाचती हैं। कुछ किया नहीं और उसके परिणाम शुरू हो जाता है। कभी हम तुरंत तो कभी वर्षों बाद। अगर हम ने आग में हाथ डाला तो तुरंत ही असर दिखेगा। पर अगर हम ने आम का पौधा बोया तो पांच साल बाद ही आम मिलेंगे। शास्त्र हमें इन कायदों से परिचित करातेे हैं। सचेत सबल होता है और इसीलिए हम शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, पर उनकी खूबी है कि वे हमेशा सीधे बात नहीं करते। वे कहानियों या मुहावरे में ही बात करते हैं। उनके अर्थ से हम वाकिफ़ नहीं होते।
जीवन की हर चीज ऐसी है। अगर हमने सही खाना खाया, तो निश्चिंत रहेंगे। अगर गलत खाया तो मुसीबतें आएंगी। उन से सीख कर सही खाना खाया तो सेहतमंद होंगे। नहीं सुनी तो, हमारी जीभ ही मौत का कारण बन सकती हैं। दुनिया में यही स्थिति है। प्रकृति हमें चेतावनी दे रही है। हमने उसकी सुन ली तो सब फिर ठीक हो सकता हैं। नहीं सुनी तो कुदरत के कोप से नहीं बच पाएंगे। व्यायाम आवश्यक है यह जानकर भी हम नहीं करते।
फिर एक दिन ऐसा आएगा जब डॉक्टर कहेंगे कि जीवित रहना है तो रोज वॉक पर जाओ। वह भी नहीं सुना तो फिर खटिया ही साथ निभाएंगी। अतः हमें कारण-प्रभाव के नियमों से सावधान रहना होगा। चतुर्भुज विष्णु की प्रतिमा लीजिए। उनकी पूजा करते हैं, मंदिर भी जाते हैं, पर वह हम से क्या बोल रहें हैं? मूर्ति के चार हाथ होते हैं, एक हाथ में शंख, और अन्य हाथों में पद्‌म, गदा एवं चक्र हैं। शंख यानी सही-गलत बताने वाली भीतरी आवाज। अगर हम इस नाद को सुनते हैं तो पद्‌म की तरफ यानी परम शांति, मोक्ष की ओर बढ़ते हैं। अगर अन्तःचेतना का स्वर नहीं सुना, तो जीवन में हमें गदा मिलेगी यानी मार पड़ेगी। जीवन में मिलने वाली मायूसी, नाकामियां से सीख ली और विवेक बुद्धि की सुन ली तो हम पद्‌म की राह पर निकलेंगे। अगर गदा की भी नहीं सुनी, तो फिर विष्णुजी का चक्र आएगा। हमारा नाश होगा।
डॉ. जानकी संतोके
वेदान्तस्कॉलर, मुंबई
अच्छी सोच