हे मन, तुम क्यों हो शर्मिंदा? किस बात का है डर? इस जनता की अदालत में तुम ही हो न्यायाधीश! खुद ही मुलज़िम इकरार करते हो खुद ही सजा देते हो। हर आदमी किसी न किसी चीज से शर्मिंदा रहता है। हम खुद को देखते हैं और लज्जित हो जाते हैं। खुदा का खौफ करो। उनकी रचना को बदनाम न करो! हमारी कोई भी समस्या अनोखी नहीं है। हम सभी एक ही माटी के हैं। कोई परिस्थिति सिर्फ हमारी नहीं हैं। क्या मुझे कोई बीमारी है? औरों को भी हैं। क्या मेरा तलाक हुआ है? औरों का भी हुआ हैं। क्या मेरा मन मेरे काबू से बाहर है? औरों का भी हैं। क्या मेरी नौकरी चली गई है? बेटी को लड़का नहीं मिल रहा, उम्र हो गई है? आमदनी कम है? घरवालों से नहीं बनती? कोई व्यसन है? फेल हुई? मैं अकेली नहीं हूं। कई लोगों का यही मसला हैं। सभी की चादर मैली हैं। शर्मिंदा होकर हम दुनिया से छिपना चाहते हैं। निराशा में जिंदगी गुज़ार देते हैं। हमारा जीवन निष्फल हो जाता हें। क्यों हम अपनी मूल्यवान ज़िंदगी को वीरान कर दे? क्यों स्वर्ग को नरक बना दे? दुखी होना पाप है! वही नरक है!
पर हम क्या कर सकते है? कैसे इस दुःख को सुख में बदल सकते हैं? छिपो नहीं, हमदर्द बनो। मेरा दुःख मुझे कितना सता रहा हैं। यही दुःख दूसरों को भी है। उनको भी परेशान कर रहा है। क्यों नहीं हम सब मिलकर इसका सामना करें! एक महिला की बेटी अपाहिज पैदा हुई। अपनी बेटी की निराशा और अक्षमता मां से देखी नहीं गई। उसने स्पास्टिक सोसायटी की स्थापना की। फिर न केवल उसकी बेटी का भविष्य उज्ज्वल हुआ, कई और बच्चों के जीवन में आशा की किरण आई। स्पास्टिक सोसायटी के कारण देश में काफी सुधार आ गया, कई जगह पर विकलांगों की मदद के केंद्र खुल गए। वह खुद भी सुखी हुई, औरों को भी सुखी बनाया। अगर वह घर में रोती रहती तो न उसकी तरक्की होती, न किसी की। इसी प्रकार एक आदमी को नौकरी नहीं मिल रही थी। काफी परेशान था। कोई काम नहीं मिल रहा था। उसने अपनी प्लेसमेंट की वेबसाइट शुरू की। उसका भी काम चल पड़ा और औरों का भी।
तो क्यों न हमारे समान पीड़ित लोगों से मिलकर सब की पीड़ा मिटाएं। अपने घोंसले में बैठकर क्यों दुःख की दीवाली मनाएं? चलो अब बेहतर संसार बनाएं जहां मेरी परेशानी किसी और को परेशान न करें। भगवान परीक्षा लेते हैं। इस बार थोड़ा मुश्किल प्रश्न उन्होंने दिया है। चलो अच्छे अंक लाएं। प्रश्न अनोखा नहीं है पर हमारा उत्तर अनोखा हो सकता है।
डॉ. जानकी संतोके
वेदान्त स्कॉलर, मुंबई
अच्छी सोच (Dainik Bhaskar 11 Jan 2016)