व्यक्ति को जैसा वह है, वैसा ही स्वीकारें

मैन इज़ अ सोशल एनिमल ऐसा कहा जाता है। हम अकेले रहना पसंद नहीं करते। हमारे बड़े शहर हैं, सोशल स्ट्रक्चर होते हैं। सबके साथ रहने में मानव की रुचि होती है। पर आदमी-आदमी से परेशान भी रहता है। लोगों के साथ काफी उलझनें पैदा होती हैं। हमारे निजी संबंधों से हमें तनाव भी होता है। पति-पत्नी में, बाप-बेटे में, काम में, खेल में, लोगों के साथ खिटखिट होती रहती हैं। ऐसा क्यों? क्या हम कभी शांति से रह नहीं सकते?
एक ऐसा मार्ग है, जिससे हम मानवी संबंधों का तनाव मिटा सकते है। उस मार्ग को हम नाम दे सकते है : करेक्ट असेसमेंट अथवा सही मूल्यांकन। हम न सिर्फ तनाव से मुक्ति पाएंगे बल्कि रिश्तों में परिवर्तन भी ला सकते हैं। क्यों हमें लोगों से तनाव होता है? हम हमेशा सोचते हैं : लोग जैसे हैं वैसे नहीं, कुछ और होना चाहिए। हम क्रोधी आदमी को देखते हैं और कहते हैं, उसको गुस्सा नहीं आना चाहिए। यह कैसे हो सकता हैं? अगर उसे गुस्सा नहीं आएगा तो वह गुस्से वाला कैसे होगा? लोग समय के पाबंद नहीं होते। हम कहते हैं होने चाहिए। लेटलतीफ तो लेटलतीफ ही रहेंगे। उनसे कुछ और की उम्मीद करना ऐसा ही है जैसे मई में ठंड की आशा करना। दूसरे बदलते नहीं। हम जरूर आईसीयू में पहुंच जाते हैं।
अगर हमने गर्मी से मांग की कि वह ठंड बन जाए, सूर्य से अंधकार की अपेक्षा की, गाय से हिंसा की मांग की या शेर से प्रेम की तो वह किसकी भूल हैं? क्यों हम नहीं समझ सकते कि सब मानव एक जैसे नहीं होते। कोई गर्म होता है तो कोई ठंडा। कोई गाय होता है तो कोई शेर। कोई कुर्सी और कोई गधा। अगर हमने इतना समझ लिया तो हमें किसी के साथ परेशानी नहीं होगी। हम समझेंगे की सब अपने-अपने स्वाभाव के अभ्यासी हैं। हम चाहकर भी अपना स्वभाव नहीं बदल सकते तो औरों से क्यों उम्मीद करते हैं? अगर हमने लोगों को सही परखा तो हम तुरंत जान जाएंगे कि उनसे कैसे पेश आना चाहिए। हम किसी से न परेशान होंगे न तो समस्या पैदा करेंगे। यही नहीं, हम सब से संतुष्ट रहेंगे। जब हम चिड़ियाघर जाते हैं क्या हमें सभी पशु रुचिकर नहीं लगते? सबकी अपनी-अपनी खूबसूरती होती हैं। इसका यह मतलब नहीं कि हम सांप को दुलार लें या शेर को जप्पी मार दें! जब हम उनका स्वभाव परखते हैं तो खुद-ब-खुद जान जाते हैं कि उनके साथ क्या कर सकते हैं और क्या नहीं? जब यह मूल्यांकन सही हो जाएगा तो दुनिया सुंदर दिखने लग जाएगी। सब लोग हमें खुशी देने लग जाएगे। सब संबंध मनोरंजक हो जाएंगे।
डॉ. जानकी संतोके
वेदान्त स्कॉलर, मुंबई